राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) के द्वारा जानकारी दी गई है कि पिछले 10 सालों में कुल 630 कर्मचारियों की सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई दौरान मौत हुई है। यह जानकारी (आरटीआई) सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई है।
इन आंकड़ों के अनुसार सीवर सफाई के दौरान सबसे ज़्यादा मौत 2019 में हुई थी, जिसकी कुल संख्या 115 थी। पिछले 10 सालों में इस कारण से तमिलनाडु में कुल 122 लोगों की मौत हुई है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में 85 लोगों की जान गई है तो वहीं दिल्ली में 63 लोगों की मौत हुई है। हरियाणा में 50 और गुजरात में 60 लोगो की मौत हुई है।
सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान इस साल 31 मार्च तक के आंकड़े पर नजर डालें तो दो कर्मचरियों की मौत हुई है। 2018 में यह आंकड़े 70 के पार थे तो वहीं 2017 में 93 लोगों की मौत हुई थी। 2016 में 55, 2015 में 62 जबकि 2014 में 52 कर्मचारियों की मौत हुई थी। 2013 में 65, 2012 में 50, 2011 में 35 तो वहीं 2010 में 30 कर्मचारियों की मौत हुई थी।
एनसीएसके द्वारा बताया गया कि यह आंकड़े अलग अलग स्त्रोत से लिए गए हैं। हालांकि इन आंकड़ों की वास्तविकता थोड़ी भिन्न हो सकती है। एनसीएसके के पास राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों से मिले हुए आकड़े होते हैं। आरटीआई द्वारा दी गई जानकारी में अद्यतन होने के कारण आंकड़ों में बदलाव आते रहते हैं।
आपको बता दें, सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाडा विल्सन का कहना है कि कानून का सही तरीके से पालन ना होने के कारण सफाई कर्मचारियों बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा सफाई कर्मचारियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि मैला ढोना रोजगार निषेध और पुनर्वास अधिनयम के कानून सही से लागू नहीं करने के कारण यह मौते हुई हैं।
दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच के सचिव संजीव कुमार का कहना है कि, किसी भी कर्मचारी या व्यक्ति के सीवर या सेप्टिक टैंक के अंदर जाने पर सख्त रोक होनी चाहिए। सफाई के लिए मशीन का इस्तेमाल होना चाहिए। टैंक के अंदर की जहरीली गैस सांस में जाने से बहुत तकलीफ होती है। अगर कोई कर्मचारी बच भी जाए तो उसे भविष्य में भी काफी दर्द और तकलीफों का सामना करना पड़ता है। यह जहरीली गैस सेहत को खराब कर देती है।
संजीव कुमार ने यह भी बताया कि बहुत से ऐसे मामले हैं जिनमें कर्मचारियों को न ही सही तरीके से प्रशिक्षण मिला न ही इस्तेमाल के लिए सही उपकरण दिया गया था। आपको बता दें, फरवरी में सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय द्वारा संसद में आंकड़े पेश किए गए थे जिसमे मैला ढोने वाले लोगों की संख्या 63000 से ज़्यादा थी। जिनमें से 35,300 के करीब लोग उत्तरप्रदेश में हैं।
मैला ढोने पर रोक और पुनर्वास अधिनियम पर 6 दिसंबर 2013 में प्रभाव में आया था। इस अधिनियम के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि बिना रक्षात्मक उपकरणों के सेप्टिक टैंक और सीवर में प्रवेश कर सफाई करना बहुत ही घातक है। इसका पालन ना करने पर दंडात्मक कार्यवाही हो सकती है।