वर्ल्ड सिजोफ्रेनिया डे– मरीजों को होती है निम्न परेशानी, कई भ्रम पाल लेते हैं दिमाग में।

आज 24 मई के दिन मनाया जाता है वर्ल्ड सिजोफ्रेनिया डे। इस दिन को लोगों में इस बीमारी के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से बनाया गया है। इस बीमारी बहुत ही अजीबों–गरीब लक्षण हैं। सिजोफ्रेनिया बहुत ही गंभीर बीमारी मानी जाती है। यह बीमारी उम्र देख कर नहीं, बल्कि किसी भी उम्र के महिला और पुरुषों को हो सकती है। कुछ लोगों का इस बीमारी को स्प्लिट पर्सनेलिटी भी कहते हैं, लेकिन यह अलग डिसऑर्डर है।

हालांकि ज्यादातर इस बीमारी के मामले किशोरावस्था में देखने को मिलते हैं। लोग अपने आप को सबसे अलग कर लेते हैं। इस बीमारी की चपेट में आने के बाद लोग अकेले रहने लगते हैं। दोस्तों रिश्तेदारों सभी से दूर होने लगते हैं। सोशल ग्रुप बदलने लगते हैं। इसके अलावा सिजोफ्रेनिया ग्रेस लोग अपने काम पर फोकस नहीं कर पाते हैं। चिड़चिड़े हो जाते हैं, नींद में कमी आने लगती है। पढ़ाई लिखाई पर भी मन भी लग पाता है।

सिजोफ्रेनिया एक किस्म की मानसिक बीमारी है, जो व्यक्ति को भावनात्मक रूप से बीमार कर देती है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति काल्पनिक दुनिया में चला जाता है। अलग अलग तरह के भ्रम में जीने लगता है। मरीजों की भावनाएं, क्षमता और व्यवहार बदल जाते हैं। कभी किसी बात से एक दम भावुक हो जाते हैं, तो कभी बहुत ज्यादा उत्तेजित। मरीज में जीवन जीने की इच्छा मर सी जाती है।

यह बीमारी ऐसी है जिसमें मरीज भ्रम में जीने लगता है। कई लोगों ने देखा गया की, वह ऐसी चीज़ें देखते यह महसूस करते हैं, जो असलियत में मौजूद ही नहीं। लेकिन मरीज उन्हें से मानते हैं। कुछ खुशबू और स्वाद महसूस करते हैं, जो वास्तव में आस पास है ही नहीं। कुछ हालातों में मरीज महसूस करने लगता है, की उसे जबरन लोग सता रहें हैं, या उनमें किसी तरह की दैविक शक्तियां आ गई हैं। हालांकि इसका असलीयत ने कोई वास्ता नहीं होता। जिसके कारण मरीज काफी अलग बरताव करने लगते हैं। सिजोफ्रेनिया मरीज ऐसा मान लेते हैं कि, आसपास के लोग उन्हें जबरदस्ती गलत साबित करने में लगे हुए हैं। और भी बहुत कुछ। मनोचिकित्सक के पास इस बीमारी में होने वाली कइयों लक्षण के लिस्ट मौजूद होंगे।

सिजोफ्रेनिया से पीड़ित मरीज कोई भी काम सही तरीके से नहीं कर पाते हैं। रोजमर्रा के कामों में भी उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एक जगह उनका ध्यान टिक ही नहीं पाता। यह चीजों को समझ नहीं पाते। अपनी ही दुनिया में मगन रहते हैं। सामाजिक दूरियां बना लेते हैं। किसी भी तरह का निर्णय करने में दिक्कत महसूस होती है।

आमतौर पर सिजोफ्रेनिया के लक्षणों का पता नहीं लग पाता है। यह जेनेटिक, बायोलॉजिकल या फिर सामाजिक स्थिति के कारण हो सकता है। इस बीमारी से ग्रसित मरीजों के दिमाग की संरचना काफी भिन्न देखी जाती है।

सिजोफ्रेनिया बीमारी दिमाग में मौजूद कैमिकल ही उत्पन्न करती है। अलग तरह के डिसऑर्डर इन कैमिकल के कारण ही पैदा होता है। जिसके कारण व्यक्ति में भावनात्मक, व्यवहारिक आदि बदलाव आते हैं। ड्रग्स, फैमिली हिस्ट्री, पुरानी बीमारी या फिर भारी तनाव के कारण यह बीमारी होने की संभावना ज्यादा होती है।

इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। इसका इलाज जीवन भर चलता है। समय समय मरीजों को मनोचिकित्सक के साथ काउंसलिंग करवाई जाती है। डॉक्टरों द्वारा मरीजों को एंटीसाइकोटिक दवाई दी जाती है। ऐसे मरीजों के अपने मनोचिकित्सक के साथ संपर्क में रहना चाहिए। मनोचिकित्सक मरीजों में सिजोफ्रेनिया के लक्षणों को कम करने में मदद करते हैं। हालांकि इसे पूरी तरह से खत्म कर पाना मुश्किल है। 

मनोचिकित्सक अपनी थेरेपी के जरिए मरीजों का मानसिक तनाव कम करने की कोशिश करते हैं। कई मरीजों को सोशल ट्रेनिंग दी जाती है। तो कुछ काफी गंभीर मामले होते हैं, जिनमें मरीजों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है। 

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