चाणक्य नीति: आइए जानते है, क्या है सफलता प्राप्ति के मूलमंत्र?

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कौन थे चाणक्य?

चाणक्य अपने समय के एक सबसे प्रसिद्ध विद्वान थे। उन्हें अन्य नामो से भी जाना जाता था जिनमे से कौटिल्य तथा विष्णुगुप्त प्रमुख है। विश्वभर में वे एक निपूर्ण राजनीतिज्ञ तथा चन्द्रगुप्त मोर्ये (सम्राट मोर्ये वंश) के महामंत्री के रूप में जाने जाते थे। चाणक्य ने अर्थशास्त्र तथा चाणक्य नीति नामक ग्रंथो की रचना की। चाणक्य नीति ग्रन्थ में जीवन को सुखमय बनाने तथा सफलता प्राप्त करने के लिए कई सुझाव दिए गए है। इस ग्रन्थ में मनुष्य को व्यावहारिक रूप से जीवनयापन करने की शिक्षा दी गयी है जिनमे से कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं।

चाणक्य कहते है कि मनुष्य को बुरे दिनों से निपटने के लिए धन संचय करना चाहिए, यहाँ यह प्रश्न उठता है कि जब मनुष्य के पास धन-सम्पति होगी, वह धन-धान्य से समृद्ध होगा तो फिर उस पर विपत्ति कहाँ से आएगी? इसका उत्तर यह है कि लक्ष्मी चंचल कही गयी है। वह किसी एक के पास स्थिर भाव से नहीं रहती। जो आज समृद्ध है, वह कल भी समृद्ध रहेगा, इसका क्या भरोसा? अत: विपत्ति के दिनों के लिए धन का संचय करना ही चाहिए।

चाणक्य के अनुसार जिस देश में व्यक्ति को सम्मान नहीं मिलता और आजीविका के साधन भी सुलभ न हो, जहाँ उसके परिवार के लोग, बन्धु-बान्धव और मित्र आदि भी न हों, उस देश में रहना उचित नहीं। इसके साथ ही चाणकय ने यह भी कहा है कि यदि ऐसे देश में विद्या-प्राप्ति के साधन भी न हो तो उस देश में मनुष्य को कभी नहीं रहना चाहिए। वहां कभी निवास नहीं करना चाहिए।

चाणक्य ने बताया है कि समय आने पर सम्बंधित व्यक्तियों का किस प्रकार परिक्षण हो सकता है। समय आने पर कौन आपका किस प्रकार साथ देता है और सौंपे गए काम को किस प्रकार पूरा करते है, इसकी जांच उसके कार्यों से होती है। काम में लगाए अथवा कार्य उपस्थित होने पर नौकरों को जाना जाता है, अर्थात नौकरों की परीक्षा होती है। दुःख के आने पर बंधुओ की परीक्षा होती है। संकट या आपत्ति के अवसर पर मित्र की पहचान होती है। धन के नाश होने पर स्त्री की परीक्षा होती है।

चाणक्य के अनुसार किसी रोग में घिर जाने पर, दुखी होने पर, अकाल पद जाने पर, शत्रु का संकट उत्पन होने पर, अभियोगों से घिरने पर तथा परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर साथ निभाने वाला व्यक्ति ही सच्चा बंधु कहलाता है।

चाणक्य कहते है कि जो मनुष्य हाथ में आये निश्चित पदार्थो को छोड़कर अनिश्चित पदार्थो को पाने की चेष्टा से उनके पीछे भागता है, उस मूर्ख को अनिश्चित मिलना तो दूर रहा, उसके निश्चित भी नष्ट हो जाता है। जबतक वह अनिश्चित पदार्थो को पाने की ललक में भटकता रहता है तब तक उसका निश्चित लुप्त हो जाता है।

चाणक्य के अनुसार जो समय निकल चूका उसके लिए पछतावा नहीं करना चाहिए समझदार मनुष्य केवल वर्तमान में ध्यान देता है अर्थात जीवन व्यतीत करता है तथा भविष्य की चिंता नहीं करता।

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