ब्लैक फंगस का सीधा असर आंखों पर, बढ़ते मामले बना रहे चिंताजनक स्तिथि।

एक तरफ कोरोना महामारी तो दूसरी तरफ ब्लैक फंगस के बढ़ते मामले, स्थिति काफी चिंता जनक होती जा रही है। इसी पर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के न्यूरोलॉजी विभग के प्रोफेसर विजयनाथ मिश्रा ने बताया कि, ब्लैक फंगस यानी की म्यूकॉरमाइकोसिस नाक के जरिए आंखों तक पहुंचता है।

ब्लैक फंगस गले में मौजूद शरीर की बड़ी धमनी जिसे कैरोटिड आर्टरी कहते हैं, पर हमला करता है। कैरोटिड आर्टरी का एक हिस्सा आंखों को रक्त पहुंचाने का काम करता है। इसी हिस्से के जरिए फंगस आंखों तक पहुंच जाता है। इसी ब्लैक फंगस या ब्लड फंगस के कारण मरीजों की आंखें पूरी तरह से खराब हो जाती है। और इन्हें निकालना पड़ रहा है। कुछ ऐसे भी गंभीर मामले हैं जिनमें यह फंगस दिमाग में प्रवेश कर जाता है। अब हर दिन यह मामले बढ़ते जा रहे हैं।

प्रोफेसर विजयनाथ मिश्रा का कहना है कि, अब तक के 26 सालों के अनुभवों में ब्लैक फंगस के महज 15 से 16 मामले देखे गए थे। लेकिन अब हालात कुछ और ही है, यह मामले हर दिन बढ़ रहे हैं, जो की बहुत चिंता की बात है। इस कोरोना महामारी में अंतराल में की गई लापरवाही भारी पड़ रही है।

ब्लैक फंगस के लक्षण–

ब्लैक फंगस के कारण सबसे पहले इसका असर आंखों पर देखने को मिलता है।
आँखें अचानक लाल हो जाती हैं। आंखों में सूजन होने लग जायेगी।
आंखों की रोशनी पर असर पड़ने लगता है। कई गंभीर मामलों में आंखों की रोशनी खत्म हो जाती है।
कोरोना मरीजों में आगे आंखों से जुड़े ये लक्षण दिखें तो बिना देरी डॉक्टर से सलाह लें। 

ब्लैक फंगस का मस्तिष्क पर असर–

ब्लैक फंगस या ब्लड फंगस जब धमीनियों के जरिय मस्तिष्क में घुस जाता है तो, मरीज को मिर्गी का दौरे, लकवा, बेहोश हो जाना, सिर में बहुत तेज दर्द, आदि समस्या होने लग जाती हैं। कई ऐसे गंभीर मामले होते हैं, जिनमें मरीज की मौत हो जाती है।

ब्लैक फंगस कैसे फैलता है?

प्रोफेसर मिश्रा के कहे अनुसार, म्यूकॉरमाइकोसिस काफी अलग तरह का फंगस है। यह फंगस खुद में इतनी क्षमता रखता है कि शरीर की धमनियों में छेद कर सकता है। ब्लड फंगस शरीर में घुसने के बाद से रक्त वाहिकाओं में पहुंचने के लिए नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता हैं। रक्त वाहिकाओं में पहुंचने के बाद धीरे धीरे या शरीर के बाकी हिस्सों में फैल जाता है। अमूमन यह फुंगस गले में घुस कर सीधे आंखों को अपनी चपेट में लेता है। फिर आंखों से मस्तिष्क की ओर। ब्लैक फंगस शरीर में घुस कर रक्त प्रवाह को रोक देता है।

रक्त का प्रवाह रुकने के कारण रक्त वाहिका सूख जाती है और गैंगरीन की तरह दिखती है। गैंगरीन काले रंग का होता है। आईजी कारण इस फंगस को ब्लैक फंगस कहा जाता है। इसे ब्लड फंगस के नाम से भी जाना जाता है।

ब्लैक फंगस होने पर डॉक्टर सबसे पहले रक्त वाहिकाओं और मस्तिष्क का एमआरआई करवाने को कहते हैं। यह जरूरी है। अगर जांच में फंगस ज्यादा दिख रहा हो तो, उसे काट कर निकालना पड़ता है। अगर कम है, एंटी फंगल थैरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। 

इस दौरान स्टेरॉइड की मात्रा ज्यादा नहीं लेनी होती है। स्टेरॉइड शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है। कोरिया संक्रमित मरीजों को स्टेरॉइड दिया जाता है, इसीलिए उनमें इसकी शिकायत ज्यादा देखने को मिल रही है। 

मधुमेह को नियंत्रित रखना जरूरी होता है। शुगर अगर 100 तक है तो चिंता को कोई बात नहीं है। लेकिन अगर 300 तक शुगर लग पहुंच रहा है तो इंसुलिन देना ज़रुरी है। 

प्रोफेसर विजयनाथ मिश्रा बताते हैं कि, डॉक्टर स्टेरॉइड की डोज मरीज की स्थिति के अनुसार देते हैं। स्टेरॉइड को डोज पांच दिन की होती है। छठे दिन स्टेरॉइड की डोज बंद कर देना चाहिए।  शुरुआत में 16 एमजी की डोज दी जाती है। फिर 8 एमजी, इसके बाद 4 एमजी फिर 2 एमजी। यह डोज डॉक्टर मरीज की स्थिति के अनुसार तय करते हैं। इसके अलावा अपने मन से स्टेरॉइड नहीं लेना है। स्टेरॉइड की अधिक मात्रा के कारण जान जाने के खतरा बना रहता है। 

प्रोफेसर मिश्रा बताते हैं कि, फंगस कई तरह के होते हैं। हमारे शरीर पर कई लाखों करोड़ों बैक्टीरिया और फंगस होते हैं। हर फंगस अलग तरह से असर करता है। कोई त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं तो कोई किसी और अंग को। इसी तरह ब्लैक फंगस रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। यह फंगस काफी ज्यादा घातक है।

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