घर पहुंचने की जद्दोजहद में वो दुनिया ही छोड़ गया, लोग उसे “प्रवासी मजदूर” बुलाते थे।

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कोरोना वायरस के इस काल में एक शब्द “प्रवासी मजदूर” हमें दिन में कई बार सुनने को या पढ़ने को मिलता है। कोई भी न्यूज़ चैनल हो या अखबार हो आपको ये शब्द लिखा हुआ मिल जायेगा। अचानक से ऐसा क्या हुआ कि इस शब्द की एहमियत इतनी बढ़ गयी है और हर जगह ये शब्द छाया हुआ है?

कौन है ये लोग जो घर पहुंचने की जद्दोजहद में अपनी जान का खतरा मोल ले रहें है?

ये वो लोग है जो जीने के लिए मेहनत पर भरोसा करते हैं और किसी के आगे हाथ फैलाना उन्हें बिल्कुल गवारा नहीं है। अपना, अपने परिवार और बच्चों का पेट भरने के लिए ये लोग एक छोटी सी पोटली लेकर अपना घर, अपना गांव, अपने सगे संबंधितो को छोड़कर काम धंधे की तलाश में घर से कई सौ किलोमीटर दूर किसी शहर में जाकर बस जाते हैं। पैसे कमाने के लिए कड़ी मेहनत मजदूरी करते हैं। जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके उतने पैसे घर भेजने के लिए एक छोटी सी कोठरी में कई लोग रहते हैं, घर से काम पर पैदल ही चले जाते हैं, जितना हो सके उतना कष्ट उठाते हैं और मजबूरी के चलते अपनी सभी इच्छाओं का गला घोट देते हैं।

लेकिन आत्म सम्मान की भावना इनमें इतनी कूट कूट के भरी होती है कि किसी वजह से किसी दिन मजदूरी न मिल पाने की स्थिति में भूखे ही सो जाते हैं, मगर किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते। ये लोग अपनी इस जिंदगी में खुश थे। फिर एक दिन अचानक से एक ऐसी बीमारी देश दुनियाँ में छा जाती है जिसके चलते सब काम धंधे और यातायात के साधन बंद हो जाते है। अब ये रोज कमा के खाने वाला प्रवासी मजदूर जो अपने और अपने परिवार के पेट को भरने के लिए अपना घरबार सबकुछ छोड़कर शहर आया था क्या करे, कहाँ से कोठरी का किराया दे और कैसे खाना खाये। उसे तो ये भी नहीं पता की बीमारी खत्म होने तक वो बच भी पायेगा या भूख से ही मर जायेगा। क्या पता वो इस बीमारी का ही शिकार हो जाए।

इसी सब कशमकश के बीच प्रवासी मजदूर सोचता है कि किसी तरह से घर पहुँच जाऊ तो जान बच सकती, घर पर तो कुछ भी रुखा सूखा खा कर जी लेंगे। वो अपनी पोटली उठाता है जो 2 – 3 रूखी सुखी रोटी उसके पास होती है को अखबार में लपेट कर एक कभी न पूरी होने वाली यात्रा पर निकल जाता है। उसे क्या पता था कि वो कभी अपने घर और परिवार के पास नहीं पहुंच पायेगा। उसे कहाँ पता था कि कोई ट्रक या रेलगाड़ी उसे रौंधती हुई चली जाएगी। कहाँ पता था कि जो रोटी वो अपने सफर में खाने के लिए साथ लेकर चल रहा है उसे भी नहीं खा पाएगा और वो रोटी उसी के पास ही गिरी पड़ी होगी।

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