भारत देश एक लोकतान्त्रिक देश है और कोई भी व्यक्ति जो चुनाव लड़ने की इच्छा रखता है और चुनाव लड़ने की पात्रता पूर्ण करता हो वो इलेक्शन लड़ सकता है। आप सभी ने लोकसभा इलेक्शन से जुड़े कई अजीबो गरीब किस्सों के बारे में सुना होगा लेकिन आपने कभी सुना है कि किसी भूत या मृत व्यक्ति ने लोकसभा इलेक्शन में भाग लिया हो और इतना ही नहीं वो भी देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ। यह कारनामा उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ के एक आम भारतीय मृतक लाल बिहारी जिन्हे उनके जीते जी मरा घोषित कर दिया गया था।
साल 1975 से 1994 के बीच लाल बिहारी को आधिकारिक रूप से मृत घोषित कर दिया गया। खुद को जीवित साबित करने के लिए उन्होंने अपने जीवन के 19 साल नौकरशाहों से लड़ाई लड़ी। इसी बीच उन्होंने खुद के जीवन की लड़ाई लड़ते हुए खुद के नाम के आगे मृतक जोड़ा। साथ ही एक संघ का गठन किया ताकि ऐसे ही और कई मामले सामने आ सकें और बाकी सभी लोग जो इस वजह से पीड़ित है उनको भी इन्साफ मिल सके। इसी उदेश्य के साथ 1980 में मृतक संघ की स्थापना की गई।
देखा जाए तो वह एक बहुत ही साधारण से व्यक्ति थे जो की उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के अमिलो में रहते थे। उनकी प्रसिद्धि की शूरुआत कुछ इस तरह से हुई कि, लाल बिहारी बैंक ऋण के लिए आवेदन करना चाहते थे और इसी के लिए उनको कुछ दस्तावेजों की आवश्यकता पड़ी जिसके लिए वह जिला आजमगढ़ मुख्यालय के राजस्व कार्यालय पहुंचे। जहां उन्हें पता लगा की उनका नाम तो आधिकारिक तौर से मृतकों की संख्या में शामिल था। लाल बिहारी के चाचा ने उनकी पुश्तैनी जमीन पर कब्जा पाने के लिए कार्यालय के लिए उनका नाम मृत के रूप में पंजीकृत कर दिया।
मृतक लाल बिहारी ने खुद को जीवित घोषित करने के लिए कई अथक प्रयास किए और इसी दौरान उन्हें पता चला कि, उनके जैसे कई अन्य लोग हैं जिन्हें उनके जीते जी ही मृत घोषित किया है। तकरीबन 100 लोगों के नाम और उजागर हुए मृतकों की लिस्ट में जो कि बकायदा जीवित हैं। अपने साथ साथ अन्य लोगों की मदद करने और ऐसे ही कई और लोगों के मामलों को उजागर करने के रूप में एक संघ स्थापना की, जिसे मृतक संघ के नाम से जाना जाता है। इस संघ की शुरुआत उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले से हुई थी। वर्तमान समय में इस संघ में तकरीबन 20,000 लोग शामिल हैं। और साल 2004 तक वह अपने संघ के 4 सदस्यों को जीवित घोषित करने में सफलता पा चुके है।
मृतक लाल बिहारी खुद को जीवित साबित करने के लिए कई तरह के प्रयास किए। उनकी लगातार कोशिशें जारी रही ताकि वह अपनी ओर ध्यान केंद्रित कर सकें। यहां तक की लाल बिहारी ने खुद के अंतिम संस्कार का भी आयोजन किया और अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन की मांग भी की। लाल बिहारी ने साल 1980 में अपने नाम के आगे मृतक शब्द जोड़ा साथ ही अपने पत्रों पर स्वर्गीय लाल बिहारी लिखवा कर हस्ताक्षर किए।
खुद को जीवित साबित करने के लिए उन्होंने के अनोखा प्रयास किया, जिसमें मृतक लाल बिहारी 1989 में राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव में खड़े हुए। हालांकि वह चुनाव में असफल रहे। दरअसल लाल बिहारी का चुनाव लड़ने का मुख्य उद्देश्य खुद को जीवित साबित करना था। ऐसे ही न जाने कितने प्रयासों, दिन रात की कोशिशों के बाद वह खुद को जीवित साबित करने में सफल हुए और 1994 में आधिकारिक रूप से खुद को जीवित घोषित किया। बता दें कि, खुद को जीवित साबित करने के बाद भी वह अन्य लोगों को उनकी जीवित पहचान वापस दिलवाने की लड़ाई जारी रखे हुए है। साल 2004 में लाल बिहारी ने मृतक संघ के एक सदस्य शिवदत्त यादव को भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के खिलाफ चुनाव में खड़ा किया।
साल 2003 में लाल बिहारी को शांतिप्रिय तरीके से लड़ाई के लिए आईजी नोबेल शांति पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। लाल बिहारी की प्रसिद्धि कुछ इस तरह बढ़ी कि, फिल्म निर्माता सतीश कौशिक ने उनकी जीवन के ऊपर एक फिल्म बनाने का निर्णय लिया। साल 2021 ने सलमान खान फिल्म एंड द सतीश कौशिक एंटरटेनमेंट प्रोडक्शन के बैनर तले सलमान खान और निशांत कौशिक ने फिल्म ‘कागज’ का निर्माण किया जो की पूरी तरह से लाल बिहारी के जीवन पर आधारित है, जिसमें उन्होंने खुद को मृतक से जीवित साबित करने के लिए शांति से कई तरीकों का इस्तेमाल किया। इस फिल्म में पंकज त्रिपाठी और मोनाल गज्जर के साथ अमर उपाध्याय भी मौजूद थे। इस फिल्म को 7 जनवरी 2021 में Zee5 पर रिलीज किया गया।